(आर्थिक मुद्दे) मेक इन इंडिया : चुनौतियाँ और सवाल (Make in India: Challenges and Concerns)
एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलो के जानकार)
अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), हरवीर सिंह (संपादक, आउटलुक हिंदी)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, NDA सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस दौरान आर्थिक वृद्धि और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिहाज़ से सरकार ने सेमी-कंडक्टर फैब्रीकेशन, सोलर फोटो वोल्टिक सेल्स, और लीथियम भंडारण बैटरियों के लिए बड़े विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना का संकेत दिया। इसके अलावा सरकार का सोलर इलेक्ट्रिक चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, कंप्यूटर सर्वर और लैपटॉप जैसे क्षेत्रों के लिए भी बड़े विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना का इरादा है। इसके लिए पारदर्शी नीलामी के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आमंत्रित करने की योजना शुरू की जायेगी। साथ ही इन कम्पनियों को आयकर अधिनियम की धारा 35 एडी और दूसरे प्रत्यक्षकर लाभों के तहत निवेश से जुड़ी आयकर छूट भी दी जायेगी।
क्या है मेक इन इंडिया?
भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 25 सितंबर, 2014 को प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम का उद्द्येश्य भारत को निवेश, विनिर्माण, संरचना और नए प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करना था। वैसे तो मेक इन इंडिया विनिर्माण क्षेत्र पर ही केंद्रित है लेकिन इसका उद्देश्य देश में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना भी है।
इसका लक्ष्य निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, आधुनिक और कुशल बुनियादी संरचना तैयार करना है। साथ ही विदेशी निवेश के लिए नए क्षेत्रों को खोलना और सरकार तथा उद्योगों के बीच एक साझेदारी का निर्माण करना भी इसके लक्ष्यों में शुमार है।
मेक इन इंडिया के लक्ष्य
- मध्यम अवधि में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर में हर साल 12-14 फीसदी की वृद्धि करना।
- साल 2022 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 16 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करना।
- विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2022 तक 100 मिलियन रोजगार के अतिरिक्त अवसर सृजित करना।
- समावेशी विकास के लिए ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के लिए उचित कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- घरेलू मूल्य संवर्धन और निर्माण में तकनीकी गहराई में वृद्धि करना।
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाना।
- विशेष रूप से पर्यावरण के संबंध में विकास की स्थिरता सुनिश्चित करना।
इन लक्ष्यों से अलग: एक नज़र आंकड़ों पर
हाल ही में केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ द्वारा भारत में बेरोजगारी को लेकर आंकड़े जारी किए गए। जारी आंकड़ों के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर पिछले 45 साल के सबसे निचले स्तर यानी 6.1 फीसदी पर पहुँच गई। ये आंकड़े जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानी पीएलएफएस रिपोर्ट के आधार पर जारी किए गए हैं।
- 2018-19 की जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन के चलते पांच साल के निचले स्तर 5.8 प्रतिशत पर आ गई।
- साल 2017 तक भारत के विनिर्माण निर्यात की कुल वैश्विक विनिर्माण निर्यात में महज़ 1.7% की हिस्सेदारी थी, जो 2014 के 1.6% के मुक़ाबले में थोड़ा ही अधिक था।
- विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सुस्त बना हुआ है, हालांकि कुल FDI अंतर्प्रवाह यानी इनफ्लो में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।
- वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की 2018-19 की लिस्ट में भारत 77वीं रैंक पर आ गया है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अब विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है।
- रक्षा क्षेत्र में नीति को लचीला बनाया गया है और एफडीआई की सीमा को 26% से 49% तक बढ़ाया गया है।
- अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए रक्षा क्षेत्र में 100% एफडीआई को अनुमति दी गई है।
- रेल जैसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निर्माण, संचालन और रखरखाव में ऑटोमैटिक रुट के तहत 100% एफडीआई की अनुमति दी गई है।
- बीमा और चिकित्सा उपकरणों के लिए उदारीकरण नियमो को मंजूरी दी गई है।
- नये निवेशकों को सहायता प्रदान करने के लिए एक अनुभवी दल भी निवेशक सुविधा प्रकोष्ठ में उपलब्ध है।
- मौजूदा बजट में भी 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए उपाय किये गए हैं। व्यापार सुगमता, सरल लाइसेंसिंग, तकनीकों का बेहतर प्रयोग आदि पर बल दिया जा रहा है।
कहाँ है दिक्कत?
'मेक इन इंडिया' का सबसे प्रमुख उद्द्येश्य निर्यात और रोज़गार को बढ़ावा देना है। लेकिन दोनों मसलों पर ये कार्यक्रम उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा। मेक इन इंडिया की सफलता के लिए सरकार ने कई प्रयास किए, लेकिन योजना का असर उस स्तर पर नहीं हुआ जितना सरकार ने दावा किया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग और जीडीपी में वृद्धि दर से रोजगार पैदा करने में मदद नहीं मिलेगी। भारत सबसे तेज गति वाले अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन रोजगार सृजन उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ है। इसके लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी रोजगार सृजन के तरीके खोजने होंगे और रोजगार बढ़ाने के दूसरे उपाय भी ढूंढने होंगे।